लोकसभा चुनाव में भाजपा के मजबूत हाथ बनेंगे सहयोगी दल

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लखनऊ, ब्यूरो। बैनर पर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का चेहरा और ‘यूपी बिहार = गई मोदी सरकार!’ का लिखा नारा। समाजवादी पार्टी के इस उत्साह के पीछे उन समीकरणों की संभावना है, जो वह सपा और जदयू के मिलन से जातियों के गठजोड़ के रूप में देख रही है। मगर, भाजपा इससे कतई बेफिक्र है।
अव्वल तो भाजपा की अपनी तैयारी है और दूसरा यह कि उसके सहयोगी दल अपना दल (एस) और निषाद पार्टी जिस तरह से ताकत जुटाते नजर आ रही है, उससे भगवा खेमा आशान्वित है कि निकाय चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में उसकी यह ‘बाजुएं’ विपक्ष के जातियों के तानेबाने को उधेड़ने में सक्षम साबित होंगी।
पूर्वांचल में प्रभावशाली माने जाने वाले अपना दल (एस) का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के साथ आई इस पार्टी का तालमेल सतत चल रहा है। दो सांसदों वाली पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल मोदी सरकार में केंद्रीय राज्यमंत्री हैं। प्रदेश में भी वह भाजपा के सहयोगी दल के रूप में 2017 के विधानसभा चुनाव से है।

अबकी अपना दल के 12 विधायक जीते और हाल ही में निर्वाचन आयोग ने अपना दल (एस) को राज्य पार्टी का दर्जा दे दिया। इससे उत्साहित दल अब पूर्वांचल तक सीमित न रहते हुए प्रदेशभर में संगठन को मजबूत करने में जुटा है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व योगी सरकार के प्राविधिक शिक्षा मंत्री आशीष पटेल अपनी रणनीति साझा करते हुए बताते हैं कि एक करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य है।
दो सितंबर को प्रतापगढ़ से शुरू हुआ सदस्यता अभियान दो अक्टूबर तक चलेगा। 25 सामान्य सदस्य बनाने पर एक सक्रिय सदस्य बनेगा। 20 सक्रिय सदस्य बनाने वाला समर्पित सदस्य और पांच समर्पित सदस्य बनाने वाला आजीवन सहयोगी सदस्य बनाया जा रहा है। इसके लिए हर एक विधानसभा क्षेत्र को चार जोन में बांट उसका सदस्यता प्रभारी प्रदेश या राष्ट्रीय पदाधिकारी को बनाया गया है।
इसी तरह निषाद पार्टी भी केंद्र और राज्य में भाजपा की सहयोगी है। इसकी भी पूर्वांचल में खास तौर पर अति पिछड़ी जातियों पर पकड़ मानी जाती है। निषाद पार्टी मझवार जाति समूह में शामिल 17 अतिपिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग लंबे समय से उठा रही है।
उच्च न्यायालय से पुरानी अधिसूचनाएं रद होने के बाद भाजपा सरकार ने इस दिशा में प्रक्रिया शुरू की है। माना जा रहा है कि यदि 17 जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण मिलता है यह बड़ा दांव होगा। इससे भाजपा के साथ ही निषाद पार्टी की भी इस जाति वर्ग में पकड़ और मजबूत होगी।
भाजपा की नजर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी पर भी है। उसके अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर सपा से नाता तोड़ चुके हैं और उनके संगठन में बगावत भी हो गई है। ऐसे में इनके सहारे भी भाजपा छोटी जातियों पर नजर जमाए हुए है। इस तरह भाजपा चाहती है कि उसके गठबंधन सहयोगी और मजबूत हों, ताकि बिहार माडल पर यदि यहां विरोधी एकजुट हो भी जाएं तो खास प्रभाव न डाल सकें।

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