Noida: ब्राह्मण रक्षा दल के मुख्य संरक्षक पंडित रवि शर्मा ने देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी समाज सुधारक बालकृष्ण शिवराम मुंजे की 75 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें नमन किया और कहा कि स्वतंत्रता उपरांत एक विशेष सोच के तहत कुछ देशभक्तों, क्रांतिकारियों एवं स्वतंत्रता सेनानियों को स्वर्णिम इतिहास के पन्नों से दूर रखने का षडयंत्र चलता रहा है। बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी का नाम भी ऐसे ही देशभक्तों की सूची में अंकित है। अगर एक वाक्य में बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी का योगदान बताना हो तो बता दें कि पहले अंग्रेज़, जातियों के आधार पर सेना में भर्ती लेते थे और इस व्यवस्था को हटाकर सभी की भर्ती हो सके, ये व्यवस्था बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी के प्रयासों से हो पाई थी। आज उनके 75वीं पुण्यतिथि पर उन्हें शत शत नमन। बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के एक ब्राह्मण परिवार में 12 दिसंबर 1872 में जन्मे बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी ने सन् 1898 में मुंबई के ग्रांट मेडिकल कॉलेज से अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी की थी। ये वो दौर था जब कांग्रेस में नर्म और गर्म दल अलग-अलग होने लगे थे। गर्म दल का नेतृत्व लाला लाजपत राय जी, बाल गंगाधर तिलक जी और बिपिनचंद्र पाल जी के हाथ में था। जब सन् 1907 में सूरत में कांग्रेस पार्टी का अधिवेशन हो रहा था तो दोनों हिस्सों के बीच तल्खियाँ बढ़ गईं। इस वक्त बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी ने खुलकर तिलक जी का समर्थन किया और यही वजह रही कि तिलक जी के वो भविष्य में भी काफी करीबी रहे। जब राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने के लिए लोकमान्य तिलक जी ने गणेश पूजा की शुरुआत की तो उसे भी बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी का पूरा समर्थन मिला। पंडाल लगाने, मूर्ति बैठाने और उसे विसर्जित करने तक के कार्यक्रम के जरिए लोकमान्य तिलक जी ने जो व्यवस्था महाराष्ट्र में शुरू की थी, उसी को वो बाद में कोलकाता भी ले गए। मोहनदास करमचंद गाँधी जी की ही तरह बोअर युद्ध के दौरान बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी भी सन् 1899 में मेडिकल कॉर्प्स में थे। साइमन कमीशन के विरोध, रक्षा बजट का प्रावधान अलग करवाने और समाज सुधार के कार्यों में बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी लगातार काम करते रहे। जब लोकमान्य तिलक जी का निधन हो गया तब वो सन् 1920 में कांग्रेस से अलग हो गए थे। पंडित रवि शर्मा ने बताया कि बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी की गाँधी की ‘धर्मनिरपेक्षता और ‘अहिंसा जैसे विषयों पर घोर असहमति थी। आगे चलकर करीब 65 वर्ष की आयु में उन्होंने नासिक में भोंसला मिलिट्री अकादमी की स्थापना कर डाली। ये स्कूल आज भी जाने माने विद्यालयों में से एक है। उनके द्वारा स्थापित किए हुए कई संस्थान तो अब अपनी सौवीं वर्षगाँठ के आस-पास हैं और आश्चर्य की बात कि कोई भी बंद या सरकारी मदद माँगने वाली बुरी स्थिति में नहीं पहुँचा। कांग्रेस से दूरी बढ़ाने के वक्त भी उनकी हिन्दू महासभा से नजदीकी कम नहीं हुई। वो डॉ. हेडगेवार के राजनैतिक गुरु थे। उनकी प्रेरणा से ही डॉ. हेडगेवार ने सन् 1925 में आरएसएस की शुरुआत की थी। डॉ. बीएस मुंजे ने सन् 1927 में हिन्दू महासभा के प्रमुख का पदभार सँभाल लिया था और उन्होंने सन् 1937 में ये पद विनायक दामोदर सावरकर को दिया। श्री शर्मा ने बताया कि सैन्य स्कूल स्थापित करने की प्रेरणा उन्हें अपनी इटली यात्रा से मिली थी, जहाँ सन् 1931 में वो मुसोलनी से भी मिले थे। कांग्रेस के घनघोर विरोध के बाद भी वो दो बार लंदन में गोलमेज़ सभाओं में भी सम्मिलित हुए थे। अपने पूरे जीवन वो यात्राएँ ही करते रहे। ऐसा भी नहीं है कि उनसे सलाह लेने और मानने वालों में केवल सावरकर और डॉ. हेडगेवार ही थे। जब डॉ. भीमराव राम आंबेडकर को धर्मपरिवर्तन करना था तो उन्होंने भी बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी से सलाह ली और मानी थी। डॉ. आंबेडकर जी ने बालकृष्ण शिवराम मुंजे जी की सलाह मानते हुए बौद्ध धर्म अपनाया था।