हनुमान वानर नहीं अपितु वेदों के विद्वान थे: डॉ. रामचन्द्र

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Ghaziabad News: बुधवार को केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में “वाल्मीकि रामायण में समाज दर्शन” विषय पर ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। य़ह कोरोना काल से 676 वाँ वेबिनार था।
वैदिक प्रवक्ता डॉ. रामचन्द्र (अध्यक्ष,संस्कृत विभाग कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) ने कहा कि वाल्मीकि रामायण सदियों से भारत एवं समस्त विश्व के आदर्श जीवन एवं स्वस्थ,समृद्ध एवं उन्नत समाज का उदाहरण प्रस्तुत करती है। रामायण में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का पारिवारिक,सामाजिक, प्रशासनिक एवं वैश्विक जीवन मूल्यों के सभी पक्षों में भारतीय चेतना के संवाहक के रूप में प्रकट होता है। राम केवल इसलिए आदर्श नहीं है कि वह स्वयं महान थे बल्कि उनका व्यक्तित्व इसलिए महान है कि उनके साथ में रहने वाला हर व्यक्ति भी राम की चेतना से चेतनावान हो जाता है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन समाज आपसी प्रेम एवं सौहार्द का उदाहरण प्रस्तुत करता है। भरत का अतुलनीय भ्रातृप्रेम जिसमें वे 14 वर्ष तक खड़ाऊ को सिंहासन पर रख करके शासन करते हैं। वनवास तो राम को मिला है पर लक्ष्मण उनके साथ एक आत्मा बनकर अनुगमन करते हैं। जनक नंदिनी सीता भी राम के संघर्षों में सहगामिनी बन जाती हैं। इतिहास के पृष्ठों में ऐसा उदाहरण दूसरा प्राप्त नहीं होता। ननिहाल से लौटे भरत को जब श्रीराम के वनवास की सूचना मिली तो वह बहुत दुखी हो गए और कहा कि इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं है जिसने भी यह दुष्कृत्य किया है उसे वह पाप लगे जो दो समय संध्या न करने वाले को लगता है या फिर जल को गंदा करने वाले को लगता है।
डॉ रामचन्द्र ने कहा कि राज्याभिषेक एवं वनवास के दो भिन्न-भिन्न अवसर पर भी राम के मुख मंडल पर समता का भाव था। बाली के पास रावण के वध की शक्ति थी पर राम ने यह कहते हुए उसका वध किया कि तुम वीर तो हो पर सदाचारी नहीं हो। रावण जैसे अतुलनीय शक्तिशाली पर उन्होंने सुग्रीव एवं हनुमान जैसे वनवासियों एवं अपने उच्चतम चरित्र से ही विजय प्राप्त कर ली। हिमालय जैसे संघर्षों के बीच भी सतत मर्यादा पालन ने उन्हें साधारण राजकुमार से कोटि-कोटि भारतीय के लिए आदर्श मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम बना दिया। रामायण में माता सीता नित्य प्रति संध्या एवं यज्ञ करती थी तथा हनुमान जी भी वानर नहीं थे अपितु वे वेदों के विद्वान शास्त्रों के मर्मज्ञ एवं अत्यंत कुशल नीति वेत्ता थे। वर्तमान समय की आवश्यकता है कि वाल्मीकि रामायण का पाठ मनन और चिंतन घर-घर में होना चाहिए जिससे कि समाज में बढ़ रही विसंगतियां दूर हो सकें।
मुख्य अतिथि शिक्षाविद चंद्रकांता गेरा (कानपुर) व अध्यक्ष कृष्णा पाहुजा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। परिषद अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया व प्रवीण आर्य ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
यिका प्रवीना ठक्कर, रविन्द्र गुप्ता, सावित्री गुप्ता, कौशल्या अरोड़ा, जनक अरोड़ा, सुधीर बंसल, कुसुम भंडारी, अनिता रेलन ने मधुर भजन सुनाए।