Ghaziabad: मंगलवार को केन्द्रीय आर्य युवक परिषद् के तत्वावधान में बन्दहुं चारिउ वेद भव बारिधि बोहित सरिस इस विषय पर बोलते हुए मुख्य वक्ता आचार्य हरि ओ3म् शास्त्री ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है कि मैं चारों वेदों की वन्दना करता हूं जो संसार सागर को पार करने के लिए जहाज के समान है।इतनी बातें तो शास्त्रानुसार ठीक है परन्तु उन्होंने इस दोहे की दूसरी पंक्ति में लिखा कि जिन्हहि न सपनेहुं खेद बरनत रघुवर बिमल जसु।।
अर्थात् रघुनाथ श्री राम जी का वर्णन करते हुए जिन्हें स्वप्न में भी खेद नहीं होता है।। क्या वेदों में श्री राम जी का वर्णन मिलता है? क्या वेद श्री राम जी के विमल यश का वर्णन करते हैं?
ऋषि दयानन्द सरस्वती जी और आर्य समाज मानव सृष्टि के प्रारंभ में ही अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा नामक चार ऋषियों के माध्यम से क्रमश:ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन चारों वेदों को मानवों की आत्मा के कल्याण हेतु ईश्वर के द्वारा उत्पन्न मानते हैं और मानव सृष्टि को उत्पन्न हुए लगभग दो अरब वर्ष हो गए।अत: वेद भी इतने ही वर्ष पुराने हैं तो उनमें लगभग 870000 वर्ष पहले हुए श्री राम चन्द्र जी कि वर्णन कैसे मिल सकता है।इसी कारण वेदों के प्रयोजन को अच्छी तरह न समझने के कारण कई भारतीय और विदेशी विद्वानों ने उनके अर्थों का अनर्थ कर डाला है।उनमें श्री सायणाचार्य,महीधर, उव्वट कीथ,ग्रिफिथ और मैक्समूलर आदि प्रमुख हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी भी इसी तरह के मध्यकालीन वेद भाष्यकारों से प्रभावित होकर ऐसा लिख गये हैं।वेदों के अर्थों को करने हेतु वैदिक शिक्षा के छह अंगों को पढऩा और समाधिस्थ होना पड़ता है। जो उपरोक्त भाष्यकारों में नहीं मिलता है।
व्याकरण के ज्ञाता विद्वान जानते हैं कि शब्दों के तीन तरह से अर्थ किए जाते हैं -रूढ़,योगरूढ़ और यौगिक।वेदों के भाष्य करते समय जो विद्वान रूढ़ और योगरूढ़ विधि का आश्रय लेते हैं वे वेदों के सत्य अर्थ को नहीं कर सकते हैं। वेदों का सत्य अर्थ तो केवल यौगिक विधि से ही किया जा सकता है।जिसे ऋषि दयानंद सरस्वती जी ने अपनाया है। जिन राम, दशरथ, शत्रुघ्न, सुग्रीव, सीता, विश्वामित्र और वशिष्ठ,अर्जुन,भीम आदि ऐतिहासिक महानुभावों के नामों को वेदों में पढ़कर विद्वान इन महापुरुषों का वर्णन वेदों में मानते हैं।उनके जन्म से भी लाखों करोड़ों वर्षों पहले वेदों का प्रकाश संसार में हो चुका था।अत: इन महापुरुषों के परिवार के गुरुजनों ने वेदों में महिमा युक्त इन नामों को अपने शिष्यों के बच्चों के नाम रखे थे।अत: ये सभी शब्द यौगिक थे।जैसे जिस राजा का रथ दशों दिशाओं में चलता था उसे दशरथ, अपने शत्रुओं का नाश करने वाले को शत्रुघ्न और सृष्टि के कण कण में बसे भगवान को राम कहते हैं। इसी प्रकार अन्य सभी नामों के अर्थ भी होते हैं। अत: ऋषिवर दयानन्द जी की शैली को अपनाकर ही हम वेदों के सत्य अर्थ को समझ सकते हैं।
मुख्य अतिथि ओम सपरा व राज सरदाना ने विषय की विवेचना की। राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल आर्य ने कुशल संचालन किया। राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य ने धन्यवाद किया।
गायिका प्रवीणा ठक्कर, रविन्द्र गुप्ता, ईश्वर देवी, कमला हंस, कमलेश चांदना, सन्तोष धर, सरला बजाज आदि के मधुर भजन हुए।